Monday, July 24, 2017

A Tryst with Shayari





अर्ज़ है उस खुदा से
कि हम नासमझ को समझ दे
हम दूसरों की खता से पहले
खुद की गुस्ताखी देखें







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दिल में जज़्बात जब दबे रह जाते हैं
खुदा गवाह है... खुदा गवाह है... 
कई सैलाबों के रास्ते खुलने को हो जाते हैं
पता नहीं कब आ जायेगा अचानक से यूँ तूफ़ान
कि संभालने पर भी संभल ना पायेगा कारवाँ






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